नई दिल्ली: अर्थव्यवस्था को बूस्ट देने के लिए कई ऐलान किए गए लेकिन टैक्स में कटौती को लेकर कोई घोषणा नहीं की गई। यह इस बात का सख्त संदेश है कि सरकार में इस बात को लेकर सहमति नहीं बनी कि उद्योग जगत के कई कई सेक्टरों द्वारा मांगे गए स्टिमुलस का फायदा ग्राहकों को मिलेगा। बल्कि यह महसूस किया गया कि टैक्स कटौती जैसा कदम एक ‘गैरजिम्मेदार इकनॉमिक्स’ और दबाव में आई सरकार की कमजोरी का सिग्नल होगी।
एक अधिकारी ने बताया, ‘हमने हाउसिंग सेक्टर के लिए पहले ही टैक्स रेट में कटौती की थी। इससे सेक्टर पटरी पर नहीं लौटा। कुछ सेक्शन डर का माहौल बनाने की कोशिश में जुटे थे ताकि टैक्स छूट को लेकर सरकार पर भारी दबाव बनाया जा सके। सरकार ने महसूस किया कि कर्ज को आसान बनाना और ढांचागत मुद्दों पर विचार ज्यादा जरूरी है।’
बजट में लगाए गए सरचार्ज से सबसे ज्यादा विरोध विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPIs) कर रहे थे, लेकिन सरकार ने घरेलू पोर्टफोलियो निवेशकों के बारे में भी सोचा और इस स्तर पर छूट का ऐलान किया। हालाकि इस कदम से सरकार को 1400 करोड़ रुपये की आमदनी का नुकसान होगा।
पैकेज का ऐलान करने से पहले हर सेक्टर की परेशानियों का विश्लेषण किया गया। सरकार ने पाया कि लोन देने को लेकर बैंकों का उतावलापन और एनबीएफसी संकट के चलते कई समस्याओं पर तुरंत ध्यान दिए जाने की जरूरत है। सुस्ती से जूझ रहे ऑटो सेक्टर को राहत देने के लिए कई उपायों की घोषणा की गई, लेकिन सरकार ने जीएसटी रेट में कटौती की मांग नहीं मानी।
सरकार ने यह देखा कि किन स्तरों पर बूस्ट की जरूरत है, उसी के आधार पर फैसला लिया। खुदरा लोन, बैंकिंग प्रक्रिया और सरकारी खरीद पॉलिसी के स्तरों पर काम कर सुस्त इकॉनमी में मांग बढ़ाने का फैसला किया।