मुंबई: दिग्गज विदेशी निवेशक फाइनैंस मिनिस्ट्री के अफसरों से मुलाकात करेंगे। दरअसल, सरकार बजट में टैक्स सरचार्ज बढ़ाए जाने के बाद फॉरेन पोर्टफोलियो इनफ्लो से जुड़ी चिंता दूर करना चाहती है। सूत्रों ने बताया कि फॉरेन इन्वेस्टर्स मीटिंग में टैक्स सरचार्ज में हालिया बढ़ोतरी, कॉर्पोरेट बॉन्ड मार्केट के सीमित ऐक्सेस और सख्त KYC नॉर्म्स का मुद्दा उठा सकते हैं। मीटिंग में इकनॉमिक अफेयर्स सेक्रटरी अतनु चक्रवर्ती की अगुआई में सीनियर ब्यूरोक्रैट्स मौजूद होंगे।मीटिंग में मॉर्गन स्टेनली इन्वेस्टमेंट, टेंपलटन, CDPQ, GIC (सिंगापुर), फिडेलिटी और कैपिटल ग्रुप के प्रतिनिधि शामिल हो सकते हैं। हालांकि यह पक्का नहीं हो पाया है कि क्या मीटिंग में फाइनैंस मिनिस्टर निर्मला सीतारमण भी शामिल होंगी। इस बारे में मॉर्गन स्टेनली, टेंपलटन, CDPQ, GIC, सिटी, डोएचे, फिडेलिटी और कैपिटल ग्रुप को भेजे गए ईमेल का जवाब खबर लिखे जाने तक नहीं मिल पाया था। एक सूत्र ने कहा, ‘सरकार पिछले कुछ हफ्तों में हुए आउटफ्लो पर फॉरेन इन्वेस्टर्स से फीडबैक और सुझाव लेना चाहती है।’
फॉरेन इन्वेस्टर्स के साथ ब्यूरोक्रैट्स की मीटिंग ट्रस्टों और असोसिएशन ऑफ पर्संस पर लगने वाले टैक्स सरचार्ज में बढ़ोतरी को लेकर FPI की बढ़ती चिंताओं के बीच हो रही है। जुलाई के बाद से 22,000 करोड़ रुपये का आउटफ्लो होने की यह एक बड़ी वजह थी। सरकार ने दो करोड़ रुपये सालाना से ज्यादा इनकम वाले सभी नॉन कॉरपोरेट एंटिटी पर लागू टैक्स सरचार्ज बढ़ा दिया है। इससे लगभग 40% FPI के प्रभावित होने का अनुमान है।
डेलॉयट के पार्टनर राजेश गांधी ने कहा, ‘इस मसले की अहमियत का पता इसी से चलता है कि हाई लेवल मीटिंग फाइनेंस बिल पास होने के बावजूद हो रही है। FPI सरकार से सरचार्ज में बढ़ोतरी को पूरी तरह वापस लिए जाने और कैपिटल गेंस टैक्स रेट में और कमी किए जाने की मांग कर सकते हैं।’ राजेश कहते हैं कि सरकार सबको कंपनी का मानकर या उनके लिए स्पेशल सरचार्ज रेट तय करके FPI को राहत दे सकती है। सूत्रों ने बताया कि मीटिंग में टैक्स के अलावा KYC नॉर्म्स को सरल बनाने के अलावा इक्विटी और डेट मार्केट्स दोनों में फॉरेन होल्डिंग लिमिट बढ़ाने पर चर्चा होगी।
इंडिया में इनवेस्टमेंट करनेवाले फॉरेन फंड्स का सेंटीमेंट मजबूत करने के लिए मार्केट रेग्युलेटर सेबी सरकार के साथ सलाह मशविरा करके KYC नॉर्म्स सहित FPI की दूसरी चिंताओं पर गौर करने के लिए एचआर खान कमिटी की बैठक बुलाई। 24 मई को सेबी को रिपोर्ट सौंपे जाने के बाद कमिटी भंग कर दी गई थी। समिति के एक सदस्य ने कहा कि KYC रिक्वायरमेंट के टर्म्स में बड़े बदलाव का सुझाव दे पाने में कमिटी इसलिए नाकामयाब रही थी क्योंकि इसके रूल्स प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (PMLA) पर आधारित थे जो सीधे सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है।