नई दिल्ली: कृषि कर्जमाफी की घोषणाओं के बीच वित्तीय संस्था नाबार्ड ने राज्यों को यह सुनिश्चित करने की सलाह दी है कि कर्जमाफी की घोषणा के तुरंत बाद बैंकों को रकम चुका दें ताकि क्रेडिट साइकल ना टूटे। यह कदम आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु जैसे राज्यों के अनुभव को देखते हुए उठाया गया है।
बैंकिंग सूत्रों के मुताबिक, इन राज्यों में कर्जमाफी की घोषणा के बाद बैंकों ने लोन की वसूली छोड़ दी लेकिन उनकी बकाया राशि सरकारों के पास पेंडिंग ही है। तमिलनाडु में 2016 में 6,000 करोड़ रुपये की कर्जमाफी की घोषणा हुई। लेकिन सरकार ने कॉपरेटिव संस्थाओं को 3,200 रुपये की रकम अगले पांच साल में चुकाने का फैसला किया। सूत्रों के मुताबिक, कुछ राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश ने बकाये का हिसाब कर दिया है।
नाबार्ड की अडवाइजरी राज्य सरकारों पर यह सुनिश्चित करने का दबाव डालेगी कि उनके पास बजट में फंड है या नहीं क्योंकि कर्ज माफी की घोषणा करने वाली अधिकतर राज्य सरकारों ने अपने वित्तीय स्थिति को नजरअंदाज किया है।एक बैंकर ने कहा, ‘यदि हमारा बकाया सरकारें नहीं देती हैं तो क्रेडिट साइकिल रुक जाता है।’ विशेषज्ञों के मुताबिक, कर्जमाफी की घोषणा के बाद किसान बैंकों को रुपया चुकाना बंद कर देते हैं और दूसरी तरफ सरकारें भी हिसाब नहीं करती हैं इस बीच एनपीए बढ़ने की वजह से बैंक नए लोन बांटने को लेकर सुस्त हो जाते हैं।इस साल कर्जमाफी की घोषणा करने वाले राज्य कर्नाटक में पिछले दिनों स्टेट लेवल बैंकर्स की बैठक में यह इस बात को रेखांकित किया गया था कि मार्च से जून 2018 के बीच बकाया कृषि लोन में 5,353 करोड़ रुपये की कमी आई। नाबार्ड यह सुनिश्चित करना चाहता है कि लोन का फ्लो किसी तरह से ना रुके।
कम से कम तीन कांग्रेस शासित राज्य मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ कर्जमाफी वाले राज्यों में शामिल हो गए हैं। ये राज्य करीब 60 हजार करोड़ रुपये का लोन माफ कर चुके हैं जो कि 12 राज्यों में करीब 2.3 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच जाता है। इसमें से बकाया कृषि लोन मार्च तक करीब 1.5 लाख करोड़ रुपये रहने का अनुमान है।