फरीदाबाद । सेक्टर 16ए स्थित मेट्रो अस्पताल के डॉक्टर रोहित गुप्ता ने स्ट्रोक एक मरीज को तीन घंटे में थ्रोम्बोलिसिस देकर देकर जान बचाई है। मरीज को ब्रेन स्टॉक की शिकायत के चलते अस्पताल में भर्ती किया गया था। इलाज के बाद मरीज अब पूरी तरह ठीक है।
मरीज का इलाज कर रहे मेट्रो अस्पताल के वरिष्ठ न्यूरोलॉजिस्ट डॉ रोहित गुप्ता ने बताया कि पलवल निवासी विनोद कुमार को एक कंपनी में नौकरी करते है। घर पर बैठे-बैठे उन्हें अचानक ब्रेन स्टॉक हुआ। इससे उसका मुंह टेडा, आवाज बंद और चेहरे पर वीकनेस आ गई। ऐसा दिमाग में ब्लड क्लॉटिंग की वजह से होता है। मरीज की गंभीर हालत देखकर परिजन उसे तुरंत मेट्रो अस्पताल ले आए। प्राथमिक जांच में मरीज के दिमाग की एक नस में ब्लॉकेज पाई गई। इसका मुख्य कारण शुगर, ब्लड प्रेशर, स्मोकिंग होता है।
इस मरीज में यह तीनों ही कारण नहीं थे। उन्होंने कहा कि अस्पताल में रोजाना स्ट्रोक के शिकार करीब 4-5 मरीज पहुंचते हैं। 70 प्रतिशत मरीजों को स्ट्रोक पड़ने पर लोग 12-12 घंटे बर्बाद कर देते हैं। समय पर इलाज नहीं करवाते हैं, जबकि अगर मरीजों को स्ट्रोक के 4.30 घंटे के भीतर लाया जाए तो थ्रोम्बोलिसिस तकनीक की मदद से उसे पूरी तरह से स्वस्थ किया जा सकता है। विनोद कुमार इसे अपना दूसरा जन्म मान रहे है वहीं उनके परिजनों के चेहरे पर इस बात की खुशी है कि अब वह सामान्य जीवन जी सकेंगे।
खून के जमे थक्कों को करता पतलाडॉ रोहित गुप्ता ने बताया कि थ्रोम्बोलिसिस थैरेपी दवाओं का प्रयोग है जिसकी मदद से जमा हुए खून के थक्कों को तोड़कर पतला किया जाता है। यह शरीर के किसी भी हिस्से में रक्त वाहिकाओं में जमा हुए कोलेस्ट्रोल व खून के थक्कों को तोड़कर मस्तिष्क में रक्त संचरण शुरू करता है और टिशू को क्षतिग्रस्त होने से रोकता है। स्ट्रोक लगने के साढ़े चार घंटे के भीतर यह तकनीक असरदार होती है।
खून के जमे थक्कों को करता पतलाडॉ रोहित गुप्ता ने बताया कि थ्रोम्बोलिसिस थैरेपी दवाओं का प्रयोग है जिसकी मदद से जमा हुए खून के थक्कों को तोड़कर पतला किया जाता है। यह शरीर के किसी भी हिस्से में रक्त वाहिकाओं में जमा हुए कोलेस्ट्रोल व खून के थक्कों को तोड़कर मस्तिष्क में रक्त संचरण शुरू करता है और टिशू को क्षतिग्रस्त होने से रोकता है। स्ट्रोक लगने के साढ़े चार घंटे के भीतर यह तकनीक असरदार होती है।